मणिपुर घटना पर पीएम मोदी रोजाना ले रहे हैं राज्य की जानकारी, चर्चा छिड़ी तो कांग्रेस भी होगी कठघरे में

मणिपुर की घटनाओं को लेकर सरकार पर आक्रामक कांग्रेस के लिए इस मुद्दे पर चर्चा भारी पड़ सकती है। माना जा रहा है कि अगले सप्ताह होने वाले अविश्वास प्रस्ताव चर्चा के वक्त कांग्रेस काल में मणिपुर के हालात और तत्कालीन केंद्र सरकार की प्रतिक्रियाओं के इतिहास का पन्ना खोला जा सकता है, जो कांग्रेस को असहज कर सकता है।

भाजपा ने यह ढूंढ निकाला है कि अक्सर नस्लीय हिंसा के प्रकोप में रहने वाले मणिपुर को लेकर कांग्रेस काल में सिर्फ एक बार 1993 में चर्चा हुई और जवाब तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने दिया था, जबकि इस बार कांग्रेस प्रधानमंत्री से जवाब मांगने की जिद पर अड़ी है। इतना ही नहीं यह भी याद दिलाया जा सकता है कि उस वक्त भी गृह राज्यमंत्री राजेश पायलट मणिपुर गए जरूर थे, लेकिन सिर्फ साढ़े तीन घंटे के लिए। उस वक्त के नगा-कुकी संघर्ष में 750 लोगों की जान गई थी।

जबकि इस बार खुद गृह मंत्री अमित शाह तीन दिन मणिपुर में रहे और हर वर्ग के लोगों से उन्होंने संवाद किया। जबकि अपने जूनियर मंत्री नित्यानंद राय को 22 दिन के लिए मणिपुर में रोके रखा।गृह मंत्री शाह ने दो दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष खरगे को पत्र लिखकर मणिपुर पर विस्तृत चर्चा के लिए सहयोग मांगा था, लेकिन विपक्ष ने इसे ठुकरा दिया। अब जब अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होगी तो कई ऐसे पहलू खुल सकते हैं जिसमें कांग्रेस काल और राजग काल में राज्य की स्थिति पर तीखी बहस होगी।

गुरुवार को शाह ने कुछ पत्रकारों से मणिपुर के बारे में कुछ चर्चा की, जो तथ्य सामने हैं वे कांग्रेस को परेशान कर सकते हैं। नस्लीय हिंसा में अक्सर फंसे रहने वाले मणिपुर में इस बार शाह पहले दिन से सक्रिय थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रोजाना दो तीन बार इसकी जानकारी लेते रहे और सुझाव भी देते रहे।शाह को एहसास है कि नस्लीय आधार पर मणिपुर का समाज बंट चुका है। इसीलिए तत्काल बड़ी संख्या में अर्धसैनिक बल भेजे गए। उच्च प्रशासनिक स्तर पर कुलदीप सिंह और विनीत जोशी जैसे अधिकारी भी नियुक्त किए।

शाह ने यह सुनिश्चित किया कि कुकी और मैतेई आबादी के बीच बफर जोन तैयार किया जाए। इसके साथ लगभग 50 हजार लोगों को सुरिक्षत उनकी आबादी के बीच पहुंचाया गया। स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए शाह खुद तीन दिन मणिपुर में रुके। अलग-अलग समुदायों से चर्चा की और उन्हें भरोसा दिया।

इससे पहले केंद्र की ओर से यह कोशिश भी हुई कि हाईकोर्ट के उस आदेश को दुरुस्त करवाया जाए जिसके कारण मणिपुर में हिंसा भड़की थी। यही कारण है कि 17 जुलाई से राज्य में हिंसा से एक भी मौत नहीं हुई। शाह खुद भी दोनों समुदाय के नेताओं से संवाद मे हैं और पिछले दिनों दिल्ली में उन्होंने कुकी समुदाय के नेताओं को भी बुलाकर चर्चा की।

माना जा रहा है कि जो तथ्य चर्चा के वक्त भाजपा द्वारा रखे जाएंगे वे कांग्रेस काल पर सवाल खड़े करेंगे। वर्तमान राजग काल में मणिपुर में इससे पहले नस्लीय हिंसा नहीं हुई, जबकि कांग्रेस काल में कई घटनाएं हो चुकी थीं। राजग काल में कभी भी मणिपुर बंद नहीं रहा, जबकि कांग्रेस काल में औसतन 50 दिन बंद हुआ करता था।

साल 2011 में सबसे लंबी 139 दिन तक बंदी रही थी। उस वक्त भी संसद में चर्चा की मांग उठी थी, लेकिन सरकार नहीं मानी। इसके पीछे विकास के साथ-साथ लगभग पूरे उत्तर पूर्व से अफस्पा हटाने, अलग-अलग राज्यों में उग्र संगठनों के साथ समझौते जैसे कई मुद्दों को कारण माना जा रहा है।शाह ने बताया कि सरकार ने भविष्य का रास्ता तैयार कर लिया है। सीमा पर पूरी तरह बाड़ लगाई जाएगी। सीमा के जरिये म्यांमार से आने वाले लोगों के फिंगर प्रिंट लेकर उन्हें नेगेटिव लिस्ट में भी डाला जाएगा ताकि वह स्थायी रूप से यहां न रह सकें।

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